कली

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कली ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. बिना खिला फूल । मुँहबँधा फूल । बोंड़ी । कलिका । उ॰—कली लगावै कपट की, नाम धरावै हेम ।—दरिया॰ बानी, पृ॰ ३४ । क्रि॰ प्र॰—आना ।—खिलना ।—निकलना ।—फटना ।— लगना । मुहा॰—दिल की कली खिलना=आनंदित होना । चित्त प्रसन्न होना ।

२. ऐसी कन्या जिसका पुरुष से समागम न हुआ हो । मुहा॰—कच्ची कली=अप्राप्तयौवना ।

३. चिड़ियों का नया निकला हुआ पर ।

४. वह तिकोना कटा हुआ कपड़ा जो कुर्त्ते, अँगरखे और पायजामे आदि में लगाया जाता है ।

५. हुक्के का वह भाग जिसमें गड़ागड़ा लगाया जाता है और जिसमें पानी रहता है । जैसे, नारियल की कली ।

६. वैष्णवों के तिलक का एक भेद जो फूल की कली की तरह होता है ।

कली ^२ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ कलई] पत्थर या सीप आदि का फुँका हुआ टुकड़ा जिससे चूना बनाया जाता है । जैसे—कली का चूना ।

कली ^३पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ कालिय] दे॰ 'कालिय' । उ॰—मुषे काल व्यालं । सिसू बछ्छ पालं । कली उत्तमंगं । कियं न्नित्त रंगं ।—पृ॰ रा॰, २ ।५० ।