तानसेन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तानसेन संज्ञा पुं॰ [?] आकसर बादशाह के समय का एक प्रसिद्ध गवैया जिसके जोड़ का आजतक कोई नहीं हुआ । विशेष— अब्बुलफजल ने लिखा है कि इधर हजार वर्षों के बीच ऐसा गायक भारतवर्ष में नहीं हुआ । यह जाति का ब्राह्मण था । कहते हैं, पहले इसका नाम त्रिलोचन मिश्र था । इसे संगीत से बहुत प्रेम था, पर गाना इसे नहीं आता था । जब बृंदावन के प्रसिद्ध स्वामी हरिदास के यहाँ गया और उनका शिष्य हुआ, तब यह संगी त में कुशल हुआ । धीरे धीरे इसकी ख्याति बढ़ने लगी । पहले यह भाट के राजा रामचंद्र बघेला के बरबार में नौकर हुआ । कहा जाता है, वहाँ इसे करोड़ों रुपए मिले । इब्राहीम लोदी ने इसे अपने यहाँ बहुत बुलाना चाहा पर यह नहीं गया । अंत में अकखर ने राजसिंहासन पर बैठने के दस वर्ष पीछे इसे अपने दरबार में संमानपूर्वक बुलाया । जिस दिन पहले पहल इसने अपना गाना बादशाह को सुनाया, बादशाह ने इसे दो लाख रुपए दिए । बादशाह के दरबार में आने के कुछ दिन पीछे यह ग्वालियर जाकर और मुहम्मद गौस नामक एक मुसलमान फकीर से कलमा पढ़कर मुसलमान हो गया । तब से यह मियाँ तानसेन के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इसके मुसलमान होने के संबंध में एक जनश्रुति है । कहते हैं, पहले बादशाह के सामने यह गाता ही नहीं था । एक दिन बादशाह ने अपनी कन्या को इसके सामने खड़ा कर दिया । उसके सौंदर्य पर मुग्ध होने के कारण इसकी प्रतिभा विकसित हो गई और इसने ऐसा अपूर्व गाना सुनाया कि बादशाहजादी भी मोहित हो गई । अकबर नै दोनों का विवाह कर दिया । तानसेन की मृत्यु के संबंध में भी एक अलौकिक घटना प्रसिद्ध है । कहा जाता है कि इसकी अद्वितीय शक्ति को देखकर दरबार के और गवैए इससे जला करते थे और इसे मार जालने के यत्न में रहा करते थे । एक दिन सबने मिलकर यह सोचा कि यदि तानसेन दिपक राग गावे तो आपसे आप भस्म हो जायगा । इस परामर्श के अनुसार एक दिन सब गवैयों ने दरबार में दीपक राग की बात छेड़ी । बादशाह को अत्यंत उत्कंठा हुई और उसने दीपक राग गाने के लिये कहा । सब गबैयों ने एक स्वर से कहा कि तानसेन के सिवा दिवक राग और कोई नहीं गा सकता । तब बादशाह ने तानसेन को आज्ञा दी । तानसेन ने बहुत कहा कि यदि आप मुझे चाहते हों तो दीपक राग न गवावें । जब बादशाह ने न माना तब उसने अपनी लड़की को मलार राग गाने के लिये पास ही बैठा लिया जिसमें दीपक राग से प्रज्वलित अग्नि का मलार राग द्वारा शमन हो जाय । दीपर राग गाते ही दरबार के सब बुझे हुए दीपक जल उठे और तानसेन भी जलने लगा । तब उसकी लड़की ने मलार राग छेड़ा । पर अपने पिता की दुर्दशा देख उसका सुर बिगड़ गया और तानसेन जलकर भस्म हो गया । उसका शव ग्वालि- यर में ले जाकर दफन किया गया । उसकी कब्र के पास एक इमली का पेड़ है । आज दिन भी गवैए इस कब्र पर जाते हैं और इमली के पत्तों को चबाते हैं । उनका विश्वास है कि इससे कंठरस उत्पन्न होता है । गवैयों में तानसेन का यहाँ तक संमान है कि उसका नाम सुनते ही वे अपने कान पकड़ते हैं । तानसेन का बनाया हुआ एक ग्रंथ भी मिला है ।