संचारी
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
संचारी ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सञ्चारिन्]
१. धूप नामक गंध द्रव्य ।
२. धूप का उठा हुआ धूम्र (को॰) ।
३. वायु । हवा ।
३. साहित्य में वे भाव जो रस के उपयोगी होकर जल की तरंगों की भाँति उनमें संचरण करते हैं । विशेष—ऐसे भाव मुख्य भाव की पुष्टि करते हैं और समय समय पर सुख्य भाव का रूप धारण कर लेते हैं । स्थायी भावों की भाँति ये रससिद्धि तक स्थिर नहीं रहते, बल्कि अत्यंत चंचलतापूर्वक सब रसों में संचरित होते रहते हैं । इन्हीं को व्यभिचारी भाव भी कहते हैं । साहित्य में नीचे लिखे ३३ संचारी भाव गिनाए गए हैं—निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, श्रम, मद, धृति, आलस्य, विषाद, मति, चिंता, मोह, स्वप्न, विबोध, स्मृति, आमर्ष, गर्व, उत्सुकता, अवहित्था, दीनता, हर्ष, ब्रोड़ा, उग्रता, निंदा, व्याधि, मरण, अपस्मार, आवेग, त्रास, उन्माद, जड़ता, चप- लता और वितर्क ।
४. अस्थिरता । चंचलता । क्षणस्थायित्व ।
५. संगीत शास्त्र के अनुसार किसी गीत के चार चरणों में से तीसरा चरण ।
६. आगंतुक ।
संचारी ^२ वि॰ [वि॰ स्त्री॰ सञ्चारिणी]
१. संचरण करनेवाला । गति- शील । अस्थिर ।
२. संक्रामक । जैसे, रोग (को॰) ।
३. चढ़ने उतरनेवाला । जैसे, स्वर (को॰) ।
४. दुर्गम (को॰) ।
५. वंश- परंपरागत । आनुवंशिक (को॰) ।
६. क्षणस्थायी (को॰) ।
७. संलग्न । लगा हुआ (को॰) ।
८. प्रवेश करनेवाला (को॰) ।
९. घूमनेवाला । भ्रमण करनेवाला (को॰) ।